आम जुमला है कि प्रतिभाओं की भारत में कद्र नहीं! यही कारण है कि पढ़े-लिखे लोग भारत से यूरोपीय देशों की तरफ पलायन कर जाते हैं. प्रतिभाओं की उपेक्षा की ये एक और कहानी है. एक कहानी जिसमें एक नायक है. वो नायक रूपहले परदों का नायक ना होकर जिंदगी के रंगमंच का जीता-जागता नायक है. उसकी विशेषता यह है कि वो ग़रीब है लेकिन उसकी योग्यता यह है कि वो जब दौड़ता है तो जैसे हवा उससे बातें कर रही होती है.
एक मौक़ा वह था जो भारतीय क्रिकेट टीम चूक गयी लेकिन हनुमानगढ़ जिले के उत्तरादा निवासी संदीप आचार्य ने सिपाही दक्षता परीक्षा के मौके को हाथ से जाने नहीं दिया. सिपाही पद के लिये शारीरिक दक्षता परीक्षा देने आये एक युवक ने एक घंटे में दस किलोमीटर तय दौड़ को महज 33 मिनट में ही पूरा कर दिया. वहाँ ड्यूटी पर मौजूद पुलिस के आला अफसरों ने दौड़ को जारी रखने का इशारा किया तो उसने चार मिनट में डेढ़ किमी की अतिरिक्त दौड़ लगायी. अधिकारियों ने उसकी प्रतिभा देखकर उसके साथ तस्वीरें खिंचवायी. मगर उनमें से कोई भी उसे नौकरी का आश्वासन न दे सका.
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महाराजा गंगासिंह खेल मैदान के चार सौ मीटर के एक घेरे में आयोजित इस दौड़ परीक्षा में वह अव्वल रहा. अन्य युवकों ने जो काम एक घंटे में पूरा किया उससे ज्यादा काम संदीप ने 37 मिनट में ही पूरा कर दिखाया. मजदूर परिवार से ताल्लुक रखने वाले संदीप ने निजी परीक्षाओं के सहारे स्नातक तक की पढ़ाई की है. पढ़ाई में होने वाले खर्चें के वहन के लिये वह निजी विद्यालयों में पढ़ाते भी हैं. अपनी प्रतिभा से अंजान संदीप ने कभी किसी प्रकार की प्रशिक्षण नहीं ली.
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निरंतर अभ्यास से यह उसकी विशिष्टता बनती चली गयी. पहले भी दो बार सेना में भर्ती के दौरान भी अपने इस कारनामे के लिये अफसरों से उसे सर्वोत्तम का ख़िताब तो मिला है लेकिन नौकरी नहीं मिली. 24 साल के संदीप बताते हैं कि दौड़-स्पर्धा का एक भी पुरस्कार उसके पास नहीं है क्योंकि कभी उन्होंने स्कूल में नियमित पढ़ाई का मौका ही नहीं मिला.
संदीप में है मौक़ा-मौक़ा
सबसे कम समय में 10 किमी दौड़ पूरा करने का राष्ट्रीय कीर्तिमान धावक सुरेंद्र सिंह के नाम है जिन्होंने 12 जुलाई 2008 को 28.2 मिनट में यह कीर्तिमान स्थापित किया था. लेकिन अगर संदीप को भी तराशा जाये तो भारत सिर्फ सचिन-धोनी नहीं उसेन बोल्ट की लंबी कतार खड़ी करने में सक्षम है!Next…
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