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खस्ता है भारतीय फुटबॉल की स्थिति

football associationभारत में क्रिकेट को छोड़कर अनेकों ऐसे खेल हैं जो जीवंत रहने के लिए जद्दोजहद करती हुई दिखाई दे रही हैं. उनकी स्थिति ऐसी हो चुकी है कि अगर उन्हें आर्थिक सहायता नहीं दिया गया तो कभी भी अपने अस्तित्व को खो सकती हैं. लेकिन क्रिकेट के रंग में अपने आप रंगने वाला यह देश यह नही जानता कि इस देश में एक ऐसा वर्ग भी है जो फुटबॉल के लिए पूरी तरह से पागल है.


जिस देश का यूरो फ़ुटबॉल चैंपियनशिप से दूर तक नाता नहीं है वहा यूरोपीय देशों और क्लबों के फुटबॉल मैचों को टीवी पर देखने वालों की संख्या भारत में लगातार बढ़ती जा रही है. ताजा फीफा रैंकिंग में भारत का स्थान 164वां हैं वह बंग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है लेकिन जब विश्वकप देखने की बात आती है तो भारत में एक अलग तरह का रोमांच होता है.


वह दिन कैसे भुलाया जा सकता है जब 1977 में विश्व के महान खिलाड़ी पेले भारत की दौरे आए थे और मोहन बगान के खिलाफ मैच खेला था. उस समय फुटबॉल प्रेमी उन्हें एक झलक देखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. आज भी वह जनून लोगों के बीच देखा जा सकता है जब कोई लोकप्रिय विदेशी फुटबॉल खिलाड़ी भारत की जमीन पर कदम रखता है तब मीडिया से लेकर फुटबॉल प्रेमियों के बीच एक अलग तरह की लहर देखी जा सकती है.


यह विडंबना ही माना जाएगा कि जिस देश में क्रिकेट के बाद फुटबॉल के भारी चाहने वाले है वहां यह खेल अपने वजूद के लिए लड़ाई लड़ रहा है. भारत में फुटबॉल की क्या स्थिति है इसका अंदाजा यहां के क्लबों को देखकर ही लगाया जा सकता है. आर्थिक दिक्कतों के कारण देश के दो बड़े नामी क्लब पिछले दो सालों में बंद हो चुके हैं. पंजाब का जेसीटी और मुंबई का महेंद्रा यूनाइटेड. जेसीटी 1971 में शुरु हुआ था तो महेंद्रा यूनाइटेड 1962 मे अस्तित्व में आया था.


अखिल भारतीय फुटबॉल संघ यह मानकर चल रही है कि फुटबॉल खिलाड़ी अपने देश के क्लबों में ही खेलकर विश्व के चोटी के टीमों में शामिल हो जाएगी जबकि यह गलत है जब तक आप अपने खिलाड़ियों को विश्व के चोटी की टीमों के साथ खेलने का मौका नहीं देंगे तब तक आप यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि वह बेहतर टीम बन सकती है.


भारत में क्ल्बों का ह्नास होना यह दर्शाता है कि भारत में तेजी से फुटबॉल के प्रति लोकप्रियता घटती जा रही है. अगर फुटबॉल की यही स्थिति रही तो जो क्रेज आज हम भारतीय युवाओं में देख रहे हैं वह लंबे समय तक बरकरार नहीं रही सकती. भारत देश में फुटबॉल खेलने वालों की कमी नहीं है अगर हम प्रोपेर फेसिलिटी के साथ देश की युवाओं को प्रोत्साहित करोंगे तो अपने आप ही कई बेहतर खिलाड़ी सामने आएंगे.


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