किसी खिलाड़ी के लिए कितनी गर्व की बात होती है जब उसे उसके द्वारा प्राप्त उपलब्धि पर पूरे देश की तरफ से बधाइयों के संदेश आते हैं. देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्ति उसकी गौरवमयी उपलब्धियों पर उसे युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बताते हैं. उस खिलाड़ी के लिए यह सम्मान तब और भी बढ़ जाता है जब वह उपलब्धि बार-बार दोहराई जाती है. ‘मद्रास टाइगर’ और ‘विशी’ के उपनामों से प्रसिद्ध विश्वनाथन आनंद के लिए भी बधाई का ऐसा ही सिलासिला शुरू हुआ जो अब तक नहीं थम रहा है.
विश्वनाथन आनंद ने मॉस्को में इजराइल के बोरिस गेलफैंड को टाई ब्रेकर में हराकर लगातार चौथी बार और कुल पांचवीं बार वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप के खिताब पर कब्जा कर लिया. विश्वनाथन आनंद और बोरिस गेलफैंड ने दर्शकों को काफी लंबा इंतजार करवाया. उनके बीच पहले 10 मैच बराबरी पर छूटे थे जबकि दो मैचों में से दोनों ने एक-एक में जीत दर्ज की थी. अंत में आनंद ने रैपिड शतरंज टाई ब्रेकर में गेलफेंड को 2.5-1.5 से हरा दिया.
आनंद को भारत रत्न दिए जाने की मांग
आनंद ने जैसे ही विश्व चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया अखिल भारतीय शतरंज महासंघ [एआईसीएफ] ने विश्वनाथन आनंद को भारत रत्न देने की अपनी मांग दोहराई. एआईसीएफ अध्यक्ष जेसीडी प्रभाकर ने कहा, “इस शानदार मौके पर, हम भारत सरकार से आग्रह करते हैं कि विश्वनाथन आनंद को भारत रत्न देकर सम्मानित करें. हमारा आग्रह केंद्र सरकार के पास लंबित है और आनंद के एक बार फिर खुद को निर्विवाद विश्व चैम्पियन के रूप में स्थापित करने के बाद वह इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के हकदार हैं.”
पहली बार ग्रैंडमास्टर
विश्वनाथन आनंद ने 6 वर्ष की आयु से शतरंज का अभ्यास शुरू कर दिया था. शतरंज की चालों को तेजी से समझने और बदलने में माहिर विश्वनाथन ने वर्ष 1983 में नेशनल सब-जूनियर चेस चैंपियनशिप में पहली उल्लेखनीय विजय प्राप्त की. इसके बाद वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप और 1987 में ग्रैंडमास्टर टाइटल ने विश्व का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट किया.
विश्व विजेता बनने का सफर
1995 में विश्वविख्यात शतरंज खिलाड़ी गैरी कास्परोव से वर्ल्ड चैंपियनशिप मुकाबला विश्वनाथन के कॅरियर के लिए मील पत्थर साबित हुआ. फिर वह दौर आया जब विश्वनाथन ने सन 2000 में तेहरान में एलेक्सेई शिरोव को पराजित कर पहली बार एफआईडीई वर्ल्ड चैंपियनशिप अपने नाम किया. विरोधी की हर चाल को गहराई से परखने वाले आनंद ने अगला विश्व चैंपियनशिप खिताब 2007 में जीता तब उनके सामने रूस के व्लादीमीर क्रैमनिक थे. इस खिताब को जीतने के लिए उनका सामना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ आठ खिलाड़ियों से हुआ. अब तक आनंद शतरंज में एक आदर्श खिलाड़ी के रूप में जाने जाने लगे. वर्ष 2008 में एक बार फिर आनंद का सामना व्लादीमीर क्रैमनिक से हुआ. आनंद को क्रैमनिक के सामने खिताब का प्रबल दावेदार नहीं माना जा रहा था. लेकिन पूरी दुनिया ने भारतीय खिलाड़ी में बड़ा बदलाव देखा था. यह 12 बाजियों का मुकाबला था जो 11 बाजियों में समाप्त हो गया. आनंद चौथी बार चैम्पियन तब बने जब उन्होंने वर्ष 2010 में बल्गारिया के वेसेलीन टोपालोव को हराया.
कई बड़े पुरस्कार अपने नाम किए
इस महान खिलाड़ी ने छोटी सी आयु से ही कई बड़े पुरस्कार अपने नाम किए. उनके नाम अर्जुन अवार्ड (1985), पद्मश्री, नेशनल सिटीजन एवार्ड और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड (1987), राजीव गांधी खेल रत्न (1991-1992), पुस्तक ‘माई बेस्ट गेम्स ऑफ चेस’ के लिए ब्रिटिश चेस फेडरेशन अवार्ड (1998), पद्मभूषण (2000), स्पेन सरकार द्वारा सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार (2001), चेस ऑस्कर (1997, 1998, 2003, 2004 और 2007), पद्म विभूषण (2007) आदि हैं.
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