क्रिकेट में हार और जीत तो लगी ही रहती है. खेल में कोई हारता है तो कोई जीतता है. लेकिन कई बार हार का डर ऐसा सताने लगता है कि लोग जीती हुई बाजी को खेलने से मना कर देते हैं. कुछ ऐसा ही भारत के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने वेस्टइंडीज के खिलाफ तीसरे और अंतिम टेस्ट मैच के दौरान किया. टीम की हार के डर से कैप्टन कूल धोनी ने टेस्ट मैच ड्रा करवा दिया. और यह ड्रा उन्होंने तब करवाया जब टीम को 90 गेंदों में 86 रनों की जरुरत थी और उसके पास 7 बल्लेबाज बचे हुए थे.
क्या एक विश्व विजेता टीम, जिसके पास दुनियां के सबसे मजबूत बल्लेबाज मौजूद हों, उसको 86 रनों का लक्ष्य पहाड़ लगने लगा या धोनी को अपने सूरमाओं पर से भरोसा उठ गया था. आखिर क्या वजह थी कि धोनी ने सात विकेट रहते ही पारी घोषित कर ड्रा को अपना लिया.
भारत यह श्रृंखला 1-0 से जीत तो गया पर 2-0 से जीत का उसका ख्वाब अब ख्वाब ही है. वेस्टइंडीज ने शिवनारायण चंद्रपाल की नाबाद 116 रनों की पारी की बदौलत भारत को जीत के लिए 180 रनों का लक्ष्य दिया. धीमी शुरुआत की वजह से यह 180 रनों का पहाड़ भी भारत को बहुत ज्यादा लगने लगा और ऊपर से मुरली विजय और राहुल द्रविड़ की धीमी बल्लेबाजी ने इस लक्ष्य को हासिल करने में और भी दिक्कतें पैदा कर दीं. लेकिन टीम को सबसे तगड़ा झटका तो तब लगा जब मिस्टर कूल कहे जाने वाले धोनी ने 15 ओवर रहते ही ड्रा का फैसला कर लिया. 94 रन पर तीन विकेट खोने के बाद भी भारत के पास धोनी, हरभजन, लक्ष्मण, कोहली जैसे बल्लेबाज थे पर कप्तान साहब को तो सीरीज बचानी थी सो लगा दिया मैच दांव पर. वैसे भी सब कहते हैं कि धोनी का दांव कभी गलत नहीं होता, हो सकता है कल भी ऐसा ही होता पर बिना खेले, हार और जीत का फैसला कोई नहीं कर सकता.
पहले भारतीय क्रिकेट टीम की आदत थी कि वह जीते हुए मैचों को भी हार जाती थी लेकिन अब लगता है कि उनकी नई आदत बनेगी जीते हुए मैचों को ड्रा करवाना. भारत को अगली सीरीज इंग्लैण्ड के खिलाफ खेलनी है जहां ऐसी गलतियों की गुंजाइश ना के बराबर होनी चाहिए. ऐसे में धोनी को अब सबक लेना होगा और खिलाड़ियों पर भरोसा दिखाना ही होगा.
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