पहला उच्च कोटि का बल्लेबाज़, दूसरा दुनिया का बेहतरीन गेंदबाज़ और तीसरा उभरता हुआ गेंदबाज़ जिसे आने वाले समय का वसीम अकरम कहा जा रहा था. लेकिन क्रिकेट पर लगे स्पॉट फिक्सिंग के दाग के कारण इन सभी का क़ॅरियर लगभग खत्म हो गया है. स्पॉट फिक्सिंग के इस दाग से केवल पाकिस्तान ही ग्रसित नहीं है बल्कि भारत, दक्षिण अफ्रीका, वेस्टइंडीज जैसे देश भी इसकी चपेट में काफी समय से हैं.
क्रिकेट में बढ़ते हुए मैच फिक्सिंग के कदमों का मुख्य कारण क्रिकेट की बढ़ती हुई लोकप्रियता और इस खेल में संलग्न पैसा है. जहां एक तबका क्रिकेट को एक ब्रांडिंग इवेंट मानता है वहीं एक दूसरा तबका भी है जो इसे पैसे कमाने की मशीन मानता है. इस दूसरे तबके को हम सट्टेबाज़ भी कहते हैं.
किसी भी क्रिकेट मैच में करोड़ों का सट्टा लगता है. मैच के रिजल्ट, खिलाड़ियों पर और यहां तक हर गेंद पर सट्टा लगता है और कहीं मैच दो दिग्गज टीमों के बीच हो तो सट्टा अरबों का हो जाता है. कहना गलत नहीं होगा कि क्रिकेट में सट्टेबाजी की देन है “मैच फिक्सिंग.” सट्टेबाज या बुकी खिलाड़ी को खराब प्रदर्शन के लिए अच्छी खासी रकम देते हैं, यह रकम इतनी होती है कि खिलाड़ी कई मैच खेलने के बाद भी नहीं कमा पाते, ऐसे में क्रिकेट को जीवन मानने वाले खिलाड़ी कभी-कभी फिसल जाते हैं और कर देते हैं द्रोह उस खेल से जिसने उसे यहां तक पहुंचाया है.
पूरी परिस्थिति पर विचार करने से एक प्रश्न उभरकर सामने आता है कि “क्या क्रिकेट में सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता दिया जाना सही होगा?”
कुछ समय पूर्व सट्टेबाजों का एक और गोरखधंधा था “लॉटरी”. लोग झट से पैसा कमाने की चाह में कई-कई हजार रुपये की लॉटरी खरीदते थे. कुछ अमीर भी बनते थे लेकिन ज्यादातर के हाथों ठेंगा लगता था. लेकिन फिर भी वह दूसरे दिन आते थे लॉटरी टिकट खरीदते थे, पैसे लगाते थे और उम्मीद में रहते थे कि किसी दिन वह भी अमीर होंगे. सब पैसे की माया है किसी से भी कुछ करा सकती है क्या कानूनी क्या गैरकानूनी. लेकिन समय के साथ-साथ लॉटरी में भी परिवर्तन आया और कई राज्य की सरकारों ने इसे कुछ मानकों के अनुरूप कानूनी मान्यता दी. गैरकानूनी कार्य कानूनी बन गया और इसके साथ-साथ इससे जुड़ी सट्टेबाजी भी कम हो गयी.
अगर क्रिकेट में भी सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता दी जाए तो क्या मैच फिक्सिंग या धांधलेबाजी में फ़र्क पड़ेगा? संकेत तो नकारात्मक है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता क्योंकि:
• सबसे पहले क्रिकेट में सट्टेबाजी के मानकों को लागू करना बहुत कठिन होगा. इसके तीनों प्रारूपों टेस्ट, एकदिवसीय और टी20 सभी के लिए सबसे पहले अलग-अलग मानक तय करने होंगे.
• दूसरा, सट्टेबाजी से जुड़े होते हैं बुकी जिनका कार्य ही पैसा कमाना होता है. ऐसे में कहीं कानून बनने के बावज़ूद यह पैसा कमाने की सनक में अपने नए नियम न बना लें.
• सट्टेबाजी को कानूनी वरीयता देने से कुछ ऐसे समूह सामने आ सकते हैं जो कानून की आड़ में गैरकानूनी कार्य करें.
• चौथी और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि यह कहना बहुत मुश्किल है कि सट्टेबाजी को अगर कानूनी मान्यता मिल जाए तो इससे मैच फिक्सिंग पर रोक लगेगी. इसके विपरीत मैच फिक्सिंग को बढ़ावा मिलने की संभावना अधिक है क्योंकि कानून की आड़ में और पैसा कमाने की सनक में सट्टेबाज मैच भी फिक्स करा सकते हैं.
किसी भी चीज़ के मानक और नियम तय करना सरल नहीं होता. इसके लिए उस विचारधारा को समझना होता है कि ऐसा क्यों होता है. जैसे क्रिकेट में सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग का मुख्य कारण पैसा है. पैसा हर कोई कमाना चाहता है लेकिन अगर हम पैसा कानून को ताक पर रखकर कमाएं तो वह गैरकानूनी हो जाता है.
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