1990-00 की और इस समय की टीम इंडिया में जो सबसे बड़ा फ़र्क है वह यह है कि इस समय टीम इंडिया तेंदुलकर के बिना भी मैच जीत सकती है.
विशाखापट्टनम एकदविसीय में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को पांच विकेट से हरा यह साबित कर दिया कि भले ही इस समय टीम में अनुभव की कमी है लेकिन युवा खिलाड़ियों के पास जीतने का जो जज्बा है उससे वह कुछ भी हासिल करने का माद्दा रखते हैं.
विराट कोहली का विराट रूप
मैच के हीरो रहे विराट कोहली ने अपनी 118 रनों की पारी से यह भी साबित कर दिया कि वह भरोसे के योग्य हैं. कोहली की इस पारी की खास बात यह थी कि मांसपेशियों में ऐंठन के रहते समय उन्हें अधिकतर पारी दर्द से खेलनी पड़ी और उसके साथ-साथ उन्होंने रनगति भी बनाए रखी.
मैच के बाद कोहली ने कहा कि “मैं ईमानदारी से कहता हूं कि मैं अभी रनों के लिए संघर्ष कर रहा था, मैंने पिछली छः-सात पारियों में रन नहीं बनाए थे अतः मेरे ऊपर रन बनाने का दबाव था और इस पारी के बाद मेरा बहुत आत्मविश्वास बढ़ा है.”
290 रनों का लक्ष्य आसान नहीं होता और वह भी तब जब आपने जल्दी-जल्दी दो विकेट खो दिए हों. लेकिन जिस तरह से युवा कोहली ने युवराज सिंह के साथ मिलकर अपने कंधों पर टीम को विजय दिलाने का भार उठाया वह टीम इंडिया के आत्मविश्वास और जीत की ललक बयां करता है.
लक्ष्य तो बड़ा था परन्तु कोहली और युवराज ने कभी अपना शांत दृष्टिकोण नहीं छोड़ा. क्योंकि शायद वह जानते थे कि अगर आप शुरू में विकेट बचाएं रहें तो अंत में किसी भी रनगति से रन बनाएं जा सकते हैं. विराट कोहली ने युवराज सिंह के साथ तीसरे विकेट के लिए 144 रन की पारी खेली और भारत को जीत के बहुत करीब पहुंचाया. लेकिन 118 रन बचे थे तो युवराज सिंह आउट हो गए ऐसे समय पर भी विराट ने अपना संयम बनाए रखा.
मैच के सकारात्मक पहलू
भारत की इस जीत से कई सकारात्मक पहलू उभर के सामने आए. उसमें से पहला था युवराज सिंह का अर्धशतक. दुनियां जानती है कि युवराज सिंह एक मैचविनर खिलाड़ी हैं लेकिन हालिया समय में उनका बल्ला शांत रहा था. जिसके कारण ही शायद भारत को एकदिवसीय क्रिकेट में नम्बर एक की पोजीशन से हाथ धोना पड़ा था लेकिन आज युवराज का बल्ला भी बोला और यह टीम इंडिया के लिए बहुत अच्छी बात है क्योंकि युवराज सिंह भारत को विश्व कप जिताने में बहुत अहम भूमिका निभा सकते हैं.
भारतीय टीम में सुरेश रैना एकमात्र ऐसे बल्लेबाज़ हैं जिन्होंने क्रिकेट के तीनों संस्करणों में शतक ठोंका है. समय के साथ-साथ सुरेश एक परिपक्व बल्लेबाज़ के तौर पर उभर कर सामने आए हैं. युवराज के आउट होने के बाद जिस तरह उन्होंने बल्लेबाज़ी की वह रैना के आत्मविश्वास को साबित करती है.
विश्व कप क्रिकेट के शुरू होने में 121 दिन बचे हैं. समय की नज़ाकत को देखते हुए सभी टीमें क्रिकेट विश्व कप की तैयारी में ज़ोर-शोर से लगी हैं. इस बार का विश्व कप भारतीय उपमहाद्वीप में होना है जहां भारत के साथ-साथ बंगलादेश और श्रीलंका क्रिकेट विश्व कप की मेजबानी करेंगे. ऐसे में टीम इंडिया की भरसक कोशिश है कि वह विश्व कप से पहले ऐसी टीम तैयार कर ले जो 1983 के बाद इतिहास एक बार फिर दोहरा दे. ऐसे में कोहली, रैना, अश्विन, रोहित शर्मा जैसे युवा और प्रतिभावान खिलाड़ियों को उचित मौके देने होंगे जिससे कि वह विश्व कप से पहले टीम में पूरी तरह ढल जाएं और भारतीय टीम की विजय गाथा में अपनी पूरी भागीदारी दें.
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