पूरे यूरोप में आयर्लैंड में फटे ज्वालामुखी से उत्पन्न काला घनघोर बदल और धुआँ छाया हुआ था. लाखों की संख्या में यात्री हवाईजहाज़ों की उड़न रद्द होने से हवाईअड्डों में फंसे थे. पूरी व्यस्था चरमरा गयी थी और चारो तरफ़ हाहाकार का माहौल था. कई कार्यक्रम रद्द किए जा रहे थे या फिर अनिश्चित समय के लिए टाले जा रहे थे. उसी वक्त भारतीय क्रिकेट टीम को टी20 विश्व कप में भाग लेने के लिए इंग्लैंड के रास्ते वेस्टइंडीज जाना था परन्तु आपदा के चलते उनका रास्ता बदलना पड़ा. भाई ऐसा होता भी क्यों नहीं आखिर इतिहास दोहराने जा रहे थे भारतीय क्रिकेट के शेर. यह अलग बात है कि टी20 विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम को मुंह की खानी पड़ी.
वहीं दूसरी तरफ़ भारत के एक विश्व विजेता खिलाड़ी को सोफिया(बुल्गारिया) में होने वाले विश्व कप ख़िताब में शिरकत करने के लिए जाना था. उसने ज्वालामुखी द्वारा उत्पन्न हुए माहौल के कारण देरी होने की आपत्ति जताई और प्रतियोगिता को दो दिन खिसकाने की मांग की परन्तु आयोजन कार्यकारणी समिति ने उसकी यह अर्जी नहीं मानी और अंततः उसको 40 घंटों की सड़क यात्रा करके सोफिया पहुंचना पड़ा.
40 घंटो की थकान भरी यात्रा के बाद किसने सोचा था कि यह विश्व विजेता अपना ख़िताब बरकरार रख पाएगा. परन्तु दूसरों से अलग करना ही विजेता की पहचान होती है और ऐसा ही इस विजेता ने भी दिखाया और बन गया एक बार फिर शतरंज की दुनिया का बेताज़ बादशाह. यह विश्व विजेता और कोई नहीं भारतीय शतरंज ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद है जिसने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सरजमीं पर हमेशा ही तिरंगा लहराया है(जैसा नाम वैसे कारनामा) और पिछले महीने सोफिया (बुल्गारिया) में सम्पन्न हुई विश्व ख़िताब की लड़ाई में उन्होंने बुल्गारिया के वेसलिन टोपालोव को 5.5 अंक के मुकाबले 6.5 अंकों से हरा दिया.
विश्वनाथन आनंद का जीवन परिचय
विश्वनाथन आनंद का जन्म 11 दिसम्बर 1969 को तमिलनाडु के मयिलादुथुरई जिले मे हुआ. छः साल की छोटी सी उम्र में विश्वनाथन आनंद ने अपनी माँ से शतरंज खेलना सीख लिया था. 14 साल की छोटी उम्र में ही विश्वनाथन आनंद ने पहला ख़िताब जीता जब उन्होंने सब जूनियर ख़िताब अपने नाम किया. एक साल बाद ही आनंद को अंतरराष्ट्रीय मास्टर के खिताब से नवाज़ा गया. 1987 में वह पहले भारतीय बने जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय जूनियर ख़िताब जीता.
विश्वनाथन आनंद की पढाई लोयला कालेज से कामर्स में हुई है. उनकी पत्नी का नाम अरुणा आनंद है जिनके साथ वह कोलाडो स्पेन में रहते है. उनके शौक पढ़ना, तैरना और गाने सुनना है.
सफलता का दौर
1988 में विश्वनाथन आनंद ने कोयंबटूर तमिलनाडु में हुई अंतरराष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिता जीती और इस तरह वह बन गए भारत के पहले ग्रैंडमास्टर. इस उपलब्धि पर उनको भारत के गौरवमय नागरिक सम्मान “पदमश्री” से सम्मानित किया गया. अगर हम विश्वनाथन आनंद के पिछले दो दशकों पर नज़र डालें तो यह उनके सबसे सुनहरे दिन रहे हैं. मौजूदा विश्व विजेता आनंद ने अभी तक चार बार यह कारनामा किया है इसके अलावा वह विश्व के पहले शतरंज खिलाड़ी हैं जिन्होंने शतरंज के तीनो प्रारूप नॉकआउट, टूर्नामेंट, और मैच के अंतरराष्ट्रीय ख़िताब अपने नाम किए हैं.
2000 में विश्वनाथन आनंद ने पहली बार विश्व विजेता का ख़िताब जीता जब उन्होंने एलेक्सी शिरोव को फाइनल मुकाबले में हराया. 2007 में दूसरी बार वह विश्व विजेता बने जो अभी तक कायम है. इसी वर्ष आनंद को भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान “पद्मा विभूषण” से सम्मानित किया गया(वह पहले भारतीय खिलाड़ी है जिसे इस सम्मान से सम्मानित किया गया है). अभी तक कुल मिलाकर विश्वनाथन आनंद ने सत्तर से भी ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय खिताबों पर कब्ज़ा किया है और 41 साल की उम्र होने के बाद भी वह ख़िताब के भूखे हैं.
आनंद को नॉकआउट शतरंज के प्रारूप का बादशाह माना जाता है. शतरंज खेलते समय जिस तरह वह अपनी चालें तेज़ी से चलते हैं उससे विपक्षी खिलाड़ी भौचक्का रह जाता है. खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता चाल चलने से पहले उनका संयम देखते बनता है.
परन्तु क्या इस खिलाड़ी का खेल के प्रति समर्पण और विश्व स्तर पे अर्जित ख्याति सब भारतीयों को मालूम है? शायद इसका उत्तर नहीं है क्योंकि क्रिकेट प्रधान देश में सिर्फ क्रिकेटरों को भगवान की तरह पूजा जाता है. क्रिकेट से जुड़े पहलुओं को लोग पढ़ना चाहते हैं, उसपर चर्चा भी करते हैं. लेकिन क्यों शतरंज जैसे खेलों के प्रति हम बेरुखी अपनाते हैं. क्या कोई भारतीय जानता है कौन हैं मैरी कोम? अगर नहीं जानते तो आज धिक्कार है इस मानस पर. हम तो सिर्फ क्रिकेटरों को देखेंगे चाहे वह बेशर्मी की हद तोड़ दें. चौंसठ काले-सफ़ेद घेरों का यह खिलाड़ी हमारी देश का गौरव है अतः यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हर उसे उचित सम्मान दें.
हे भारतीयों अब तो अपने नेत्र खोलो,
सफ़ेद पोशाक के आगे भी जहॉ है,
सफ़ेद के बाद काले का भी शमां है.
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