आंकड़ों का खेल तो छोड़ो साख भी नहीं बचा पाई टीम इंडिया
भारत को सेमी-फाइनल में पहुंचने की आस बनाए रखने के लिए श्रीलंका को कम-से-कम 20 रन या 2.3 ओवर रहते हराना था वहीं मैच जीत कर श्रीलंका, भारत और वेस्टइंडीज के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी.
अपनी पिछली गलतियों से सबक लेकर धोनी ने टॉस जीत पहले बल्लेबाज़ी करने का फैसला किया. शुरुवाती 9 ओवरों तक रैना का दम भी दिखा और गौतम ने भी गंभीर हो कर बल्लेबाज़ी की. 10 रन प्रति ओवर की रनगति के खेलते हुए दोनों ने 9 ओवर में एक विकेट खोकर 90 रन ठोक दिए.
मैच विश्लेषण | ||||||
भारत के पक्षमें | भारत की अच्छी शुरुवात, 9 ओवर में एक विकेट पर 90 रन | श्रीलंका की खराब शुरुवात, 6 रन पर दोनों सलामी बल्लेबाज़ आउट | ||||
श्रीलंकाई गेंबाजों की वापसी,. आखिरी के 11 ओवर में भारत के केवल 73 रन | दिलशान का उपद्रव, 27 गेंद में ठोके 33 रन | |||||
कप्तान संगकारा और एंजेलो मैथ्यूज के बीच हुई 56 की साझेदारी | अंतिम गेंद में छक्का मार चमारा कापुगेदरा ने श्रीलंका को दिलायी जीत | |||||
श्रीलंका के पक्ष में |
परन्तु एक बार गंभीर के आउट होने के बाद चौकों-छक्कों की वर्षा थम गई और अंतिम 6 ओवर में भारतीय बल्लेबाज़ केवल 4 चौके ही मार सके. उसमें से भी दो चौके रैना ने मारे. आलम यह था कि दुनिया भर में विस्फोटक बल्लेबाज़ी के लिए मशहूर धोनी, युवराज और पठान थिलन परेरा जैसे गेंदबाज़ की गेंदें छू ही नहीं पा रहे थे. चौका मारना तो दूर की बात थी. अंततः रैना और गंभीर की पारी की बदौलत भारत ने 163 बनाए.
कल भारत की शुरुवाती ओवरों में गेंदबाज़ी देख ऐसा लग रहा था कि वह अपना होम-वर्क करके आयी है. शुरू के 2 ओवर में ही दोनों सलामी बल्लेबाज़ पवेलियन लौट गए. आरंभ में ऐसा लगता था कि इसी तरह मैच चलता रहा तो मैच 12 ओवर में समाप्त हो जाएगा और भारत की आस जगी रहेगी परन्तु भाई साहब यह टीम इंडिया है जो जीतता हुआ मैच भी हारना जानती है. पूरी प्रतियोगिता में फ्लाप रहे दिलशान का बल्ला भी कल चलने लगा, सिर्फ चला ही नहीं ताबड़-तोड़ चला. फिर क्या था भारतीय गेंदबाजों के हाथ-पैर फूलने लगे और शुरू हो गयी छक्को की बरसात. कप्तान संगकारा और एंजेलो मैथ्यूज तो दौड़ा-दौड़ा कर गेंदबाजों की पिटाई कर रहे थे. चमारा कापुगेद ने तो जावेद मियादाद के छक्के की याद दिला दी जों उन्होंने शारजाह में 23 साल पहले चेतन शर्मा की आखिरी गेंद में मारा था. आखिरी गेंद में श्रीलंका को जीत के लिए तीन रन चाहिए थे और चमारा कापुगेद ने नेहरा की गेंद पर छक्का मार अपनी टीम को जीत दिलायी.
यह टीम माँगे पैसा
भारतीय टीम के टी20 विश्व कप से बाहर होने पर जितना दुःख उनके प्रशंसकों को हो शायद उतना दुःख खिलाडियों को ना हो, क्योंकि यह टीम इंडिया है जो माँगे पैसा. अगर यह आई.पी.अल होता तो शायद यह खिलाड़ी जीत के लिए जी-जान लगा देते परन्तु अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आई.पी.अल की तर्ज़ पर पैसा तो नहीं मिलता है. तो फिर क्यों खेलना?
विश्व कप शुरू होने से पहले यह आशंका लगायी जा रही थी कि आई.पी.अल में अपना पसीना बहा रहे खिलाड़ियों को क्या शारीरिक थकान से जूझना पड़ेगा? क्या वह मानसिक रूप से अपने आप को प्रतियोगिता के लिए ढाल पाएंगे? इन सवालो का जवा़ब भारतीय खिलाडियों के प्रदर्शन में देखने को मिला. उन्हें देख साफ़ लग रहा था कि आई.पी.अल में बहाया गया पसीना आज उनके आड़े आ रहा है. युवराज तो शारीरिक और मानसिक रूप से अपने आप को ढाल ही नहीं पा रहे है जिसके कारण यह मैच जिताऊ बल्लेबाज़ पूरी प्रतियोगिता में फ्लाप रहा.
पिछले टी20 विश्व कप की तरह भारत इस बार भी अपनी साख बचाने में नाकामयाब रहा और सुपर-आठ के अपने सभी मैच हार कर प्रतियोगिता से बाहर हो गया है. अगर हम भारत के प्रदर्शन का आकलन करें तो उनके इस लचर प्रदर्शन का कौन जिम्मेदार है, इसका अन्वेषण करना बहुत कठिन होगा जहाँ खिलाडियों के साथ-साथ बी.सी.सी.आई भी उतनी जिम्मेदार है जितना की चयनकर्ता.
आई.पी.अल तो पैसा कमाने का जरिया है अतः यह तो हर साल चलेगा और हर साल भारतीय खिलाड़ी भी इसमे शिरकत करेंगे लेकिन इसके साथ-साथ अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में सामंजस्य बनाना भी ज़रुरी है. बी.सी.सी.आई को देखना होगा कि खिलाडियों को उपयुक्त आराम मिले, चयनकर्ताओं को देखना होगा कि उन्हीं खिलाडियों का चयन हो जो अंतराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर निरंतर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हों और खिलाडियों को चाहिए कि एक बार मौका मिले तो उसका वह भरपूर फ़ायदा उठाएं और अपनी टीम, अपने राष्ट्र के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें.
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