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आशा की उड़ान-इतिहास दोहराने की चाह


भारतीय क्रिकेट टीम में कैप्टन कूल नाम से प्रसिद्ध महेंद्र सिंह धोनी को जब 2007 में पहली बार टी20 की कप्तानी सौंपी गयी थी तो किसी ने यह आकलन नहीं किया था कि धोनी की यह युवा सेना विश्व शिखर पर विजयी पताका लहराएगी. आज वही जज्बा और ख्वाब लिए एक बार फिर धोनी की सेना तैयार खड़ी है, अब सिर्फ विजय घोष की देरी है.

Singh Dhoniभारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में भारतीय क्रिकेट टीम 1 मई को अपना पहला मैच अफगानिस्तान के खिलाफ सेंट लूसिया के ग्रास इसलेट के बेसनजोर मैदान में खेलेगी. भारत को ग्रुप-सी में रखा गया है जिसमें दक्षिण अफ्रीका भी शामिल है. आईपीएल के व्यस्त कार्यक्रम के कारण भारतीय टीम बिना किसी अभ्यास मैच के ही अपना अभियान शुरू करेगी.

2007 दक्षिण अफ्रीका में हुए प्रथम टी20 विश्व कप में भारत ने सुनहरे अक्षरों से इतिहास रचा था और फाइनल मुकाबले में अपने चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को 5 रनों से मात दी थी. परन्तु दूसरे टी20 विश्व कप (इंग्लैंड 2009) में उसे सिर्फ एक सफलता हाथ लगी, जहाँ उसने अपने से कमजोर टीम आयरलैंड को पहले मुकाबले में 5 विकेट से हराया लेकिन दूसरे दौर के आते-आते उसका प्रदर्शन कमज़ोर पड़ गया और अंततः उसे अपना बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ा.

टी20 विश्व कप में चयनित सदस्य

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मिल गया मौका


श्रीकांत की अगुवाई वाली बी.सी.सी.आई की चयन समिति ने 3 अप्रैल को 15 सदस्य वाली टीम का एलान किया था, जहाँ बेंगलूर के तेज़ गेंदबाज़ विनयकुमार को घरेलू क्रिकेट में अपने शानदार प्रदर्शन का तोहफ़ा मिला, वहीं खराब फॉर्म से गुजर रहे इशांत शर्मा की छुट्टी कर दी गयी.

अगर हम धोनी की अगुवाईमें टी20 विश्व कप के लिएचुने गए दल पर नज़र डाले तो, टीम में 7 बल्लेबाज (महेंद्र सिंह धोनी, युवराज सिंह, गौतम गंभीर, मुरली विजय, सुरेश रैना, दिनेश कार्तिक, रोहित शर्मा ) 6 गेंदबाज़ (हरभजन सिंह, ज़हीर खान, पियूष चावला, आशीष नेहरा, प्रवीण कुमार, विनय कुमार) और 2 आलराउंडर (युसूफ पठान, रविंदर जडेजा ) होंगे, गैरी कॅर्स्टन टीम के कोच होंगे.

भारतीय टीम का सर दर्द

टी20 विश्व कप से पहले खिलाड़ियों की खराब फार्म ने टीम इंडिया का सर दर्द बढ़ा दिया है. अगर आईपीएल के मैचों पर नजर डालें तो मौजूदा टी-20 टीम में कम ही ऐसे खिलाड़ी हैं जो अच्छी फार्म में हैं.

क्या फिर दिखेगा कमाल ?
क्या फिर दिखेगा कमाल ?


जरा सोचिए कि अगर टी-20 विश्व कप की टीम के चयन के लिए इंडियन प्रीमियर लीग का प्रदर्शन मापदंड होता तो क्या युवराज सिंह, गौतम गंभीर, पीयूष चावला, प्रवीण कुमार और यहां तक की यूसुफ पठान को टीम में जगह मिल पाती, शायद नहीं क्योंकि तब वेस्टइंडीज जाने वाली पंद्रह सदस्यों वाली टीम में सौरभ तिवारी, राबिन उथप्पा, अंबाती रायूडु, प्रज्ञान ओझा, अमित मिश्रा और इरफान पठान जैसे खिलाड़ी शामिल होते जिन्होंने आईपीएल में प्रभावशाली प्रदर्शन किया लेकिन वह के. श्रीकांत की अगुवाई वाली चयन समिति को प्रभावित करने में असफल रहे.

कैरेबियाई देशों में 30 अप्रैल से शुरू होने वाले विश्व कप में भारत की जो टीम भाग लेगी उसमें कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो अच्छी फार्म में नहीं चल रहे हैं. इनमें कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को भी शामिल किया जा सकता है जो आईपीएल में लगातार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए. धोनी ने 13 मैच में 287 रन बनाए जिसमें दो अर्धशतक के अलावा दो शून्य भी शामिल हैं. भारतीय टीम हालांकि सबसे अधिक चिंतित युवराज की फार्म को लेकर है जिन्होंने 2007 में दक्षिण अफ्रीका में खेले गए पहले विश्व कप के दौरान इंग्लैंड के स्टुअर्ट ब्राड के एक ओवर में छह छक्के जमाए थे. किंग्स इलेवन पंजाब की तरफ से खेलने वाले युवराज ने आईपीएल थ्री के 14 मैच में 21.55 की औसत से केवल 255 रन बनाए. वह किसी भी मैच में 50 रन की संख्या नहीं छू पाए.

सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग भी आईपीएल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए थे लेकिन वह कंधे की चोट के कारण विश्व कप टीम से बाहर हो गए. उनके जोड़ीदार गंभीर ने भी 11 मैच में दो ही अच्छी पारियां खेलीं. बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने 30.77 की औसत से 277 रन बनाए और उनके बल्ले से केवल दो छक्के निकले.

ताबड़तोड़ बल्लेबाजी के लिए मशहूर यूसुफ पठान ने 14 मैच में भले ही 333 रन बनाए लेकिन इनमें उनकी 100 और 73 रन की दो पारियां शामिल हैं. यदि इन दोनों पारियों को निकाल दिया जाता है तो उनके नाम पर बाकी 12 मैच में केवल 160 रन दर्ज होंगे. इसके अलावा शॉर्ट पिच और तेज़ गेंदबाजी के सामने उनकी कमजोरी उजागर हुयी, अगर आप अंतरराष्ट्रीय मंच पर ऐसी गलती करते है तो वह नासूर बन जाती है.

रैना पर होगी दारोमदारी

यह है यंगीस्तान..
यह है यंगीस्तान..


भारतीय टीम में शामिल बल्लेबाजों में सुरेश रैना ने सर्वाधिक प्रभावित किया हाली में समाप्त हुई आईपीएल में उन्होंने 16 मैच में 520 रन बनाए, यह फाइनल में उन्हीं की पारी थी जिसके बदौलत चेन्नई विजयी रहा अब भारतीय टीम को भी उनसे कुछ ऐसी ही उम्मीद है. परन्तु अगर हम 2009 विश्व कप पर ध्यान दें तो उस समय रैना शॉर्ट पिच  गेंद के  सामने  असहाय दिखे थे.  रोहित शर्मा (16 मैच में 404 रन) ने भी टुकड़ों में अच्छा प्रदर्शन किया जबकि मुरली विजय को सहवाग के बाहर होने के कारण उनके आईपीएल में अच्छे प्रदर्शन का ही इनाम मिला. विजय ने 15 मैच में 458 रन बनाए जिसमें 26 छक्के भी शामिल हैं.

गेंदबाजी भी है समस्या

अब अगर गेंदबाजी की बात की जाए तो शायद चयनकर्ता यह सोच रहे होंगे कि उन्होंने प्रज्ञान ओझा या अमित मिश्रा को क्यों टीम में नहीं लिया. ओझा ने 16 मैच में 20.42 की औसत से आईपीएल में सर्वाधिक 21 विकेट लिए जबकि अमित मिश्रा ने 14 मैच में 21.35 की औसत से 17 विकेट हासिल किए. चेन्नई सुपर किंग्स के स्पिनर आर. अश्विन और शादाब जकाती ने भी उम्दा प्रदर्शन करके प्रभावित किया.

zahitr khanभारतीय टीम में चुने गए लेग स्पिनर पीयूष चावला 14 मैच में 30.58 की औसत से 12 विकेट ही ले पाए और उनका इकॉनमी रेट (7.48) भी ओझा और मिश्रा से अधिक है. तेज गेंदबाजों में प्रवीण कुमार 12 मैच में 38.00 की औसत से आठ विकेट ही ले पाए. उनसे बेहतर प्रदर्शन तो आर पी सिंह, सिद्धार्थ त्रिवेदी का रहा जो कि टीम में शामिल नहीं हैं. तेज गेंदबाज जहीर खान (14 मैच में 15 विकेट), और हरभजन सिंह (15 मैच में 17 विकेट) ने अच्छा प्रदर्शन किया. और विनय कुमार को तो आईपीएल में ही अच्छे प्रदर्शन (14 मैच में 16 विकेट) का इनाम मिला और टीम में चुना गया. इसके अलावा आशीष नेहरा ज़्यादातर समय चोटिल रहे, और आई.पी.एल में केवल चार मैच खेले, हालांकि इन मैचों में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा.

गेंदबाजी में जो एक और समस्या है वह अंतिम ओवरो में गेंदबाजी की है, टी20 में गेंदबाजों को रणनीति बना कर गेंदबजी करनी होती है. जहाँ यॉर्कर और गति पपरिवर्तन तेज़ गेंदबाजों का मुख्य हथियार होता है, वहीं धीमी गति के गेंदबाजों का फ्लाइट परिवर्तन. परन्तु मौजूदा भारतीय दल में ज़हीर और हरभजन सिंह को छोड़कर किसी से आशा करना बेकार होगा.

अब तो सुधर जाओ

अब तो सुधरने से अर्थ क्षेत्ररक्षण से है, जो हमेशा से हार का कारण रहा है. हम कैच तो ऐसे टपकाते हैं, जैसे पेड़ से पके हुए आम टपकते हैं. अगर पिछली दो श्रृंखला पर नज़र डालें तो हमारा क्षेत्ररक्षण अंतरराष्ट्रीय स्तर का नहीं रहा है. हर मैच में हम बीस से तीस रन लचर क्षेत्ररक्षण के द्वारा विपक्ष को भेंट स्वरूप प्रदान करते हैं, और यही हर हार-जीत का फैसला करता है. अब तो हमारे पास यंग जैसा विश्व स्तरीय प्रशिक्षक है, परन्तु यह तो कुत्ते की पूंछ है जो कभी सीधी नहीं होती.

नहीं दिखेगी वीरू-सचिन की जोड़ी

नहीं दिखेगी जोड़ी
नहीं दिखेगी जोड़ी


सहवाग और सचिन की जोड़ी, विश्व की सबसे खतरनाक जोड़ी है. जहाँ दोनों अपने-आप में मैच जिताऊ बल्लेबाज हैं, वही दुनिया भर के गेंदबाज़ उनका लोहा मानते हैं. इनको आउट करने में  गेंदबाजों के छक्के छूट जाते हैं. परन्तु इस बार के टी20 विश्व कप में हम इन दोनों की बल्लेबाजी से महरूम रहेंगे. जहाँ सहवाग चोट के चलते प्रतियोगिता से बाहर हो गए हैं, वहीं सचिन ने 2007 में ही अंतराष्ट्रीय टी20 से सन्यास ले लिया था.

सचिन तेंदुलकर अपनी जिंदगी के बेहतरीन दौर से गुजर रहे हैं. उनके मौजूदा फार्म को देखते हुए उनकी कमी जरूर खलेगी, वहीं चौके-छक्कों के बादशाह सहवाग ऐसे खिलाड़ी हैं जो अगर पिच पर होते हैं तो रन अपने आप बनते नहीं बल्कि बहते हैं. वो कोई भी मैच का रुख कभी भी मोड़ सकते हैं. परन्तु वेस्ट इंडीज में भारतीय टीम इन दोनों के बिना उतरेगी.

क्या आईपीएल होगा जीत का रोड़ा

परिणाम के लिहाज से पिछला विश्व कप भारत के लिए अच्छा नहीं रहा और अब भारतीय खिलाड़ी इसमें बदलाव करने को बेताब होंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि आईपीएल में अपनी फ्रेंचाइजी टीमों के लिए जिन खिलाडि़यों ने बढ़िया प्रदर्शन किया वो राष्ट्रीय टीम के लिए कैसा प्रदर्शन करते हैं. पिछले विश्व कप में देखा गया था कि खिलाड़ी शारीरिक और मानसिक रूप से काफी थके नजर आ रहे थे. वे मैदान पर अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से कोसों दूर थे, इसका मूलभूत कारण आईपीएल था, क्योंकि पिछला विश्व कप भी ठीक आईपीएल की धमाकेदार सत्र के कुछ दिन बाद खेला गया था, और इस बार भी यही हालत है. क्या खिलाड़ी  आईपीएल की शारीरिक और मानसिक थकान को दूर रखकर उम्दा प्रदर्शन कर पाएंगे? इसका पता प्रतियोगिता के दौरान ही चलेगा.

पिछले कुछ समय से कैरेबियाई पिचों का मिजाज बदल गया है. जहाँ पहले यहाँ तेज़ गेंदबाजों  को मदद् मिलती थी वहीं आज यह धीमी गति के गेंदबाजों के अनुकूल हो गया है. अतः यह ज़रूरी हो जाता है कि, आप गतिपरिवर्तन पर ज्यादा ध्यान दें, और युवराज सिंह, रैना सरीखे पार्ट टाइम गेंदबाजों का सही उपयोग करें.

अंत में अगर हमें 2007 का इतिहास दोहराना है तो, हर क्षेत्र में चोटी का प्रदर्शन करना होगा, बल्लेबाजों को रन बनाने होंगे, गेंदबाजों को उम्दा गेंदबाजी करनी होगी और क्षेत्ररक्षण में सुधार लाना होगा. तभी हम वास्तविक रूप से विजेता कहलाने के हकदार होंगे.

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