पहले था दिल्ली चलो का नारा, अब है जीतना उद्देश्य हमारा
दिल्ली से चला यह विजयी रथ अब ग्वांगझाऊ में दौड़ेगा
जिसके पीछे अब पूरा एशिया रहेगा
देश में जीते अब विदेश में जीतेंगे
कामनवेल्थ के चीते अब एशियाड में जीतेंगे
जागरण जंक्शन में एशियाई खेलों को फालो करें
19वें कॉमनवेल्थ गेम्स इस वर्ष भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित किए जा रहे हैं. इस खेल के आयोजन के लिए पिछ्ले एक साल से दिल्ली में निर्माणकार्य जोर-शोर से चालू है. एक साल से देश के सभी बडे खेलनायक इस आयोजन के लिए कमर कस रहे हैं. यों तो ओलंपिक का इतिहास बहुत पुराना है मगर इस क्षेत्र में कॉमनवेल्थ गेम्स का यह महज 19वां संस्करण है. इस साल होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स में कई नई चीजें होंगी. हर नई चीज को जानने से पहले उसके इतिहास के बारे में विस्तार से जान लेना अच्छा होता है. आइए नजर डालते हैं कॉमनवेल्थ गेम्स और उसके इतिहास पर.
क्या है कॉमनवेल्थ गेम
कॉमनवेल्थ या राष्ट्रमंडल गेम एक बहुराष्ट्रीय खेल आयोजन है. इसके साथ ही इसमें कई खेल एक साथ खेले जाते हैं. इस खेल में वह सभी देश हिस्सा लेते हैं, जो ओलंपिक के भी सदस्य हैं. इसका आयोजन हर चार साल में एक बार होता है. इसमें वह सभी खेल खेले जाते हैं जो ओलम्पिक का हिस्सा होते हैं साथ ही राष्ट्रमंडल खेलों के अपने भी कुछ खास खेल होते हैं. इस खेल आयोजन पर नियंत्रण का काम राष्ट्रमंडल खेल संघ संभालता है.
राष्ट्रमंडल खेलों की पृष्ठभूमि
राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन पहली बार वर्ष 1930 में हेमिल्टन शहर, ओंटेरियो( कनाडा) में आयोजित किया गया था. तब इस खेल आयोजन का नाम ब्रिटिश एम्पायर गेम्स था. इसके खेल आयोजन का मूल विचार एक भारतीय का था जिनका नाम एशली कूपर था. उन्होंने इस खेल आयोजन को आपसी शांति और सौहार्द्र के लिए सही मानते हुए इसका प्रस्ताव तात्कालिक राजनेताओं को दिया था. वर्ष 1928 में कनाडा के प्रमुख एथलीट बॉबी रॉबिंसन को प्रथम राष्ट्र मंडल खेलों के आयोजन का भार सौंपा गया. 1930 में पहली बार इस खेल आयोजन का शुभारंभ हुआ जिसमें मात्र 11 देशों के 400 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था. इसके नाम में भी कई बार बदलाव हुए जैसे 1954 में इसेब्रिटिश एम्पायर और कॉमन वेल्थगेम्स के नाम से पुकारा गया तो 1970 में ब्रिटिश कॉमन वेल्थ गेम्स से. आखिरकार वर्ष 1978 में इसे सर्वसम्मति से कॉमनवेल्थ गेम्सनाम दिया गया. वर्ष 1998 में कुआलालमपुर में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में एक बड़ा बदलाव देखा गया जब क्रिकेट, हॉकी और नेटबॉल जैसे खेलों ने पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. हालांकि क्रिकेट को अभी भी मान्यता नही मिल पाई है.
जो बात इन राष्ट्रमंडल खेलों को बाकी खेल आयोजनों से अलग करती है वह है इसका उद्देश्य और इसकी नीति.
राष्ट्र्मंडल खेल तीन नीतियों को मानता है
मानवता, समानता और नियति. इसका मानना है कि इससे विश्वभर में शांति और सहयोग की भावना बढ़ेगी. यह नीतियां हजारों लोगों को प्रेरणा देती हैं और उन्हें आपस में जोड़ कर राष्ट्रमंडल देशों के अंदर खेलों को अपनाने का व्यापक नजरिया प्रदान करती हैं.
इसके प्रतियोगियों की बात करें तो इसमें 6 देश(आस्ट्रेलिया, कनाडा, इंग्लैण्ड, न्यूजीलैण्ड, स्कॉटलैण्ड और वेल्स) ऐसे हैं जो प्रत्येक वर्ष इसमें हिस्सा लेते हैं. पिछले यानी मेलबोर्न में हुए कॉमन वेल्थ गेम्स में सभी 53 राष्ट्रमंडल देशों सहित कुल 71 देशों की टीमों ने भाग लिया था.
और हां, वर्ष 1930 में शुरु होने के बाद द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से 1930-1942 के मध्य इन खेलों का आयोजन न हो सका. मगर 1942 में एक बार फिर से इन खेलों का आयोजन होने लगा.
इसके प्रतीक और कुछ अन्य तथ्य भी बड़े रोचक हैं जैसे महारानी की बेटन रिले, प्रतीक और लोगो आदि.
आइए इन पर भी एक नजर डालते हैं
क्या है राष्ट्रमंडल
राष्ट्रमंडल देशों का निर्माण ब्रिटेन ने किया था. इसमें वह सभी 53 देश शामिल हैं जो कभी ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था के भाग थे. राष्ट्रमंडल देशों के निर्माण के पीछे उद्देश्य लोकतंत्र, साक्षरता, मानवाधिकार, बेहतर प्रशासन, मुक्त व्यापार और विश्व शांति को बढ़ावा देना था.
महारानी की बेटन रिले
राष्ट्रमंडल खेलों की एक महान परंपरा महारानी की बेटन रिले है. शुरुआत में रिले की जगह ब्रिटिश झंडे का उपयोग होता था जिसे महारानी के हाथों से लेकर धावक दौड़ लगाते थे. यह झंडा इन खेलों में ब्रिटिश प्रभुसत्ता को दर्शाता था. मगर 1950 के बाद रिले की शुरुआत हुई जिसे धावकों का एक दल बकिंघम पैलैस, ब्रिटेन से लेता है. यह रिले पारम्परिक रूप से बकिंघम पैलेस, लंदन में शुभारंभ कार्यक्रम से शुरू होती है, जिसके दौरान महारानी अपने संदेश के साथ धावक को बेटन सौंपती हैं जो रिले का प्रथम मानक धावक होता है. बाद में इस बेटन को प्रथम ग्रहण करने का अधिकार सभी बडी खेल हस्तियों को दे दिया गया. बाकी के सभी देशों में अंग्रेजी की वर्णमाला के मुताबिक बारी-बारी इस रिले को ले जाया जाता है.
प्रतीक
राष्ट्रमंडल खेलों का कोई भी समान प्रतीक नही होता है. हर वर्ष आयोजन करने वाले देश अपने मुताबिक इस प्रतीक को चुनते हैं. इस वर्ष भारत में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों का प्रतीक “शेरा” को रखा गया है. शेरा का तात्पर्य होता है शेर. इसका पर्दापण मेलबर्न के राष्ट्रमंडल खेलों के समापन समारोह में किया गया. शेरा को शौर्य, साहस, शक्ति और भव्यता की निशानी माना जाता है. यह नारंगी और काली पट्टियों वाला शेर भारत की भावना को प्रकट करता है, जबकि इसके शौर्य की कहानी खिलाड़ियों को अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन करने की भावना से भर देती है. शेरा को बड़े दिल वाला माना जाता है जो सभी को “आएं और खेलें” की भावना से भर देता है.
लोगो
प्रतीक की तरह ही इसका लोगो भी समान नहीं रहता हालांकि इसके समान प्रयोग के लिए संघ राष्ट्रमंडल देशों का लोगो ही उपयोग करता है. इस वर्ष होने वाले खेलों में लोगो के रुप में चक्र का प्रयोग किया गया है. चक्र भारत की स्वतंत्रता, एकता और शक्ति का राष्ट्रीय प्रतीक है. यह सदैव चलते रहने की याद दिलाता है. ऊपर की ओर सक्रिय यह सतरंगा चक्र मानव आकृति में दर्शाया गया है जो एक गर्वोन्नत और रंग-बिरंगे राष्ट्र की वृद्धि को ऊर्जा देने के लिए भारत के विविध समुदायों को एक साथ लाने का प्रतीक है.
बोल
लोगो की प्रेरणादायी पंक्ति ‘आएं और खेलें’ है. यह राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति को इसमें भाग लेने का एक निमंत्रण है जो अपनी सभी संकुचित भावनाओं को छोड़ें और अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार खेल की सच्ची भावना के साथ इसमें भाग लें. यह नए रिकॉर्ड बनाने और दिल्ली के लोगो को 2010 राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान एक उत्तम मेजबान की भूमिका निभाने का आह्वान करती है.
खेल
इस वर्ष कुल 17 खेल शामिल किए गए हैं जिनमें प्रमुख हैं: तीरंदाजी, जलक्रीड़ा, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, साइक्लिंग्, जिमनास्टिक्स, हॉकी, लॉनबॉल, नेटबॉल, रगबी 7 एस, शूटिंग, स्कैश, टेबल टेनिस, टेनिस, भारोत्तोलन और कुश्ती.
खेलों ने बदली दिल्ली की सूरत
कॉमनवेल्थ गेम्स ने दिल्ली की सूरत बदल कर रख दी है. हर जगह मैट्रो की पहुंच, नई-नई बसों का नजारा और डीलक्स बसों की संख्या में वृद्धि मानों दिल्ली सरकार यातायात को फाइव स्टार बनाना चाहती हो. सडकों और फ्लाइओवर की हालत देख आप एक बार चकरा जाएंगे. हर जगह फ्लाइओवर और पुलों ने यातायात को सुगम बनाने का बीड़ा उठा लिया है.
खेलों पर खर्च
कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए खर्चा भी बहुत हो रहा है. बजट की बात करें तो खेल मंत्रालय और अन्य सरकारी एजेंसियों से कुल 8324 करोड रुपए की बजट पास हुआ है.
अब अगर इतनी बड़ी रकम को व्यय किया जा रहा है तो सरकार उम्मीद करेगी कि कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन सफल हो ताकि भविष्य में हमें और भी खेल आयोजनों का मौका मिल पाए.
फिर भी दिल्ली सरकार और संपूर्ण भारतवासी इस आयोजन को सफल बनाने में भरपूर सहयोग और योगदान दे रहे हैं. जनता अपनी कठिनाइयों को नजर अंदाज कर रही है तो सरकार भी जनता के सहयोग को सराह रही है. अब देखना यह है कि क्या इस खेल आयोजन में सभी देश हमारे इंतजामों से खुश होते हैं या कॉमनवेल्थ गेम्स भारत में पहली और आखिरी बार बन कर रह जाता है.
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